
(B) नदियों की घाटी-
- हिमालय समानांतर श्रेणियों से निर्मित हैं। इन्हें कश्मीर घाटी, , कांगड़ा व कुल्लू घाटियाँ (हिमाचल प्रदेश), भागीरथी घाटी (गंगोत्री के दून घाटी, समीप) व मंदाकिनी घाटी (केदारनाथ के समीप) आदि अनेक घाटियों द्वारा प्रतिच्छेदित किया जाता है। ये पर्यटकों के आर्कषण के स्थान हैं व यहाँ जनसंख्या का जमाव भी पाया जाता है।
- कुल्लू घाटी -हिमाचल प्रदेश में धौलाधर और पीर पंजाल श्रेणियों के मध्य अवस्थित है। नेलांग घाटी भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित है। भारत-चीन सीमा के निकट सुरम्य नेलांग घाटी है।
- मर्खा घाटी – लद्दाख केन्द्रशासित प्रदेश की प्रसिद्ध घाटी है। समुद्रतल से 2438 मी० की ऊँचाई पर भारत के पूर्वोत्तर राज्य नागालैण्ड के पीछे जुकू घाटी स्थित है।
- सांग्ला घाटी – किन्नौर (हिमाचल प्रदेश) में स्थित है। यह चारों ओर के पर्वतीय चोटियों और बस्पा नदी से घिरी हुई है। → युथांग घाटी-गंगटोक (सिक्किम की राजधानी) से लगभग 149 किमी० दूर स्थित है। यह रोडोडेंड्रान झाड़ियों व अन्य वनस्पति प्रजातियों से ढकी हुई है। इस घाटी को “हॉट स्प्रिंग” के रूप में भी जाना जाता है।
- शांत घाटी – या मौन घाटी केरल के पलक्कड़ पालघाट जिले में स्थित है। यह पश्चिमी घाट की नीलिगिरी पहाड़ियों पर स्थित है।
2. भू-जल संसाधन
- भू-जल, वह जल होता है जो चट्टानों और मिट्टी में रिस जाता है और भूमि के नीचे जमा होता है जिन चट्टानों में भूल जल जमा होता है, उन्हें जलभृत बजरी, रेत, बलुआ पत्थर या चूने पत्थर से बने होता है। इन चट्टानों से पानी नीचे बहता रहता है। जो चट्टानों को पारगम्य बना देती है।
- जलभृतों में जिन जगहों पर पानी भरता है, वे संतृप्त जोन कहलाते हैं। सतह पर जिस गहराई पर पानी मिलता है, वह जल स्तर कहलाता है। जलस्तर जमीन से नीचे एक फुट तक उथला भी हो सकता है और कई मीटर गहराई तक भी हो सकता है।
- भूजल का भूमिगत जमाव इस संसाधन की क्षमता व अपरिवर्तनीय निम्नीकरण के प्रति उसकी संवेदनशीलता को स्पष्ट करता है।भारत में इस जल जमाव को निम्नलिखित श्रेणियों में बाँटा जा सकता है।
1. प्रायद्वीपीय भारत में कठोर चट्टान वाले जलभृत-
भारत के संपूर्ण जलभृत क्षेत्र का 65% भाग कठोर चट्टानों वाला है। इनमें से अधिकतर मध्य प्रायद्वीपीय भारत में हैं। जहाँ की भूमि कठोर चट्टानों से निर्मित है। इन जलभृतों का पानी दोबारा भरने योग्य नहीं है। और निरंतर प्रयोग किये जाने के कारण अंततः सूख जाता है।
2. सिंधु गंगा मैदानों (उत्तर भारतीय नदी क्षेत्र) में कहारी जलभृंत-
- उत्तर भारत में गंगा और सिंधु के मैदानों में पाए जाने वाले इन जलभृतों में पानी के संग्रहण की अद्भुत क्षमता है इसलिये इन्हें जलापूर्ति का बहुमूल्य स्रोत माना जाता है।
- समूचे देश में शुद्ध वार्षिक भू-जल की उपलब्धता 398 अरब क्यूबिक मीटर है।
- देश के वार्षिक भू-जल संसाधन में वर्षा जल का योगदान 68% है। • अन्य स्रोतों जैसे नहरों में रिसाव, सिंचाई के दौरान पानी वापस लौटना, टैंक तालाब तथा जल संरक्षण जैसी संरचनाओं का दोबारा भरना, आदि की हिस्सेदारी 32% है।
- दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान राज्यों में भू जल विकास का स्तर बहुत अधिक है। जहाँ भूजल विकास 100% से अधिक है। इसका अर्थ यह है कि इन राज्यों में वार्षिक भू-जल उपयोग वार्षिक भूजल पुनर्भरण से अधिक है।
भूजल की निकासी व उपयोग-
भारत में भूजल के अत्यधिक उपयोग और संरक्षण के संकट की ओर तेजी से बढ़ रहा है। भारत में भूजल की अपेक्षा सतही जल की उपलब्धता अधिक है। फिर भी भूजल की विकेन्द्रित उपलब्धता के कारण यह आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
- भारत की कृषि और पेयजल आपूर्ति में उसकी हिस्सेदारी बहुत बड़ी है। निष्कर्षित भूजल का 48% हिस्सा सिंचाई क्षेत्र में प्रयोग होता है।
- इसके बाद घरेलू उपयोग का स्थान आता है। जो कि भूजल का 9% है। भूजल का 2% हिस्सा उद्योगों में उपयोग किया जाता है। शहरों में जल की 50% और गाँवों में जल की 85% घरेलू आवश्यकताएँ भूजल से ही पूरी होती है।
भू-जल के माध्यम से सिंचाई-
- भू-जल का सबसे अधिक उपयोग सिंचाई के लिये होता है। देश में सिंचाई के मुख्य साधनों में नहरें, टैंक और कुएँ तथा ट्यूबवेल हैं। इन सभी जल स्रोतों में भू-जल की बहुत बड़ी हिस्सेदारी हैं। कुएँ, खासतौर पर खुदाई किए गए, उथले ट्यूबवेल और गहरे ट्यूबवेल सिंचाई के लिए 61.6% जल उपलब्ध कराते हैं। जबकि नहरें 24.5% जल उपलब्ध कराती है।
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