
जीवित्रपुत्रिका का व्रत क्यों रखा जाता हैं ?
दोस्तों आपको बता दूँ की इस बार जीवित्रपुत्रिका 18 सितम्बर 2022 दिन रविवार को हैं
हर वर्ष अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष की आष्टमी तिथि पर जीवित्रपुत्रिका का ब्रत रखा जाता हैं |
यह ब्रत हिन्दू धर्म में बहुत विशेष माना गया हैं |
जीवित्रपुत्रिका का ब्रत माताये अपनी संतान की दीर्घायु और सुखी जीवन के लिए ब्रत रखती हैं |
यह त्यौहार कृष्ण जन्माष्टमी के अष्टमी के दिन यह त्यौहार पड़ता हैं |
जीवित्रपुत्रिका का व्रत सभी माता ये अपने संतान की रक्षा करने के लिए इस व्रत
को रखती हैं |
खास कर इस व्रत को अपने देश मे मनाया जाता हैं |
इस व्रत को लगभग भारत के सभी राज्य में मनाया जाता हैं
इस व्रत में बिहार और उत्तर प्रदेश सभी महिलायेँ धूम धाम से मनाती हैं |
हिन्दू धर्म कई ऐसे तौहार जो धूम धाम से मनाया जाता हैं |
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जीवित्रपुत्रिका व्रत पर शुभ मुहूर्त
सिद्धि योग – 18 सितम्बर 2022 को सुबह 06:34 मिनट तक ही माना गया हैं |
लाभ व अमृत मुहूर्त – 18 सितम्बर 2022 को सुबह 09:11 से लेकर दोपहर 12:15 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्त -18 सितम्बर 2022 को सुबह 11: 51 मिनट से लेकर दोपहर 12:40 मिनट तक
उत्तम मुहूर्त – 18 सितम्बर 2022 को दोपहर 01: से लेकर 03 :19 मिनट तक
जीवित्रपुत्रिका व्रत पर पूजा करने की विधि ?
इसके लिए कुशा से बनी जीमूतवाहन की प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित करें. इस व्रत में मिट्टी और गाय के गोबर से चील व सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है. इनके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है. पूजा समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है
जीवित्रपुत्रिका के दिन गाँव की सभी ब्रती महिलाए नहा धोकर नये वस्त्र धारण कर एक जगह इकठ्ठा होकर
बैठती है | और अपने अपने थार में फल लेकर आती है और देशी का दीप जलाती हैं |
उस दिन महिलाए नये नये कहानी सुनती हैं |
और एक गोल घेरा बना कर बैठती हैं जी देखने मे काफी अच्छा लगता हैं |
माँताएं अपने संतान की खुशहाली के लिए जिउतिया व्रत निराहार और निर्जला रखती हैं। व्रत को लेकर विद्वान संतों ने कहा है कि जीवित्पुत्रिका व्रत 18 सितंबर को करना ही श्रेयस्कर होगा
इस व्रत के संबंध में भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताया था कि यह व्रत संतान की सुरक्षा के लिए किया जाता है। इस व्रत से जुड़ी एक पौराणिक कथा है, जो जिमूतवाहन से जुड़ी है। सत्य युग में गंधर्वों के एक राजकुमार थे, जिनका नाम जिमूतवाहन था। वे सद् आचरण, सत्यवादी, बडे उदार और परोपकारी थे। जिमूतवाहन को राजसिंहासन पर बिठाकर उनके पिता वन में वानप्रस्थी का जीवन बिताने चले गए। जिमूतवाहन का राज-पाट में मन नहीं लगता था। वे राज-पाट की जिम्मेदारी अपने भाइयों को सौंप पिता की सेवा करने के उद्देश्य से वन में चल दिए। वन में ही उनका विवाह मलयवती नाम की कन्या के साथ हो गया।
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